History of Ashwatthama in Hindi | अश्वत्थामा की पूरी कहानी, महाभारत युद्ध से जुड़े रहस्य
अश्वत्थामा की पूरी कहानी, महाभारत युद्ध से जुड़े रहस्य |The Immortal Ashwatthama | History of Ashwatthama
अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र थे पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा था द्रोणाचार्य पांडवों और कौरवों के गुरु थे अश्वत्थामा कौरवों की तरफ से युद्ध में भाग लिए था। महाभारत में अश्वत्थामा और दुर्योधन एक पके मित्र थे। महाभारत के अध्याय में अश्वत्थामा और दुर्योधन मित्र थे। (The Immortal Ashwatthama)
अश्वथामा फिल्म विक्की कौशल – Aswathama movie vicky kaushal
बॉलीवुड के एक्टर विक्की कौशल जल्दी ही अश्वत्थामा पर आधारित एक साइंटिफिक मूवी में नजर आएंगे। उस मूवी का नाम है अश्वत्थामा(vicky kaushal the immortal ashwatthama)मूवी के ऐलान के बाद से ही सोशल मीडिया पर अश्वत्थामा की कहानी को लेकर काफी चर्चा शुरू हो गई है लोग पूछते हैं कि आखिर ये अश्वत्थामा है कौन और इसकी कहानी क्या है।
अश्वत्थामा की पूरी कहानी – Here is the Story of Ashwattama
महाभारत में अश्वत्थामा एक ऐसा अध्याय से जुड़ा है जो आज भी इस धरती पर जिंदा माना जाता है. कि अश्वत्थामा को भगवान श्रीकृष्ण के श्राप के कारण आज भी अश्वत्थामा जिंदा है अश्वत्थामा जंगलों में भटक रहा है जब दुनिया खत्म होगी तब जाकर उसको मुक्ति मिलेगी। (The Immortal Ashwatthama)अश्वत्थामा एक महान गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र है। पांडवों और कौरवों गुरु द्रोणाचार्य थे द्रोणाचार्य एक वचन से बंधे होने के कारण महाभारत के युद्ध में कौरवों की साइड से थे और गुरु द्रोणाचार्य कौरवों की सेना के सेनापति भी बने थे। अश्वत्थामा भी कौरवों की तरफ से था।महाभारत में अश्वत्थामा और दुर्योधन पके मित्र माने जाते है।
अश्वत्थामा का जन्म – Birth of Ashwatthama
अश्वत्थामा का जन्म शास्त्रों में ऐसा भी कहा गया है कि द्रोणाचार्य को संतान नहीं हो रही थी हिमाचल प्रदेश की वादियों में तेपेश्वर महादेव नामक स्वयंभू शिवलिंग की पूजा अर्चना के बाद उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई अश्वत्थामा भगवान शिव शंकर का अंश माना जाता है (Birth of Ashwatthama)अश्वत्थामा के जन्म से ही उनके सिर पर एक मणि थी जो अश्वत्थामा की किसी भी देव, दानव या जानवर से रक्षा कर सकती थी लेकिन एक बार प्राण के बदले द्रौपदी ने उससे सजा के तौर पर उसकी मणि छिन ली और उसके बाल कटवा दिए थे।
गुरु द्रोणाचार्य का जीवन बहुत ही संघर्ष से व्यतीत हो रहा था एक बार द्रोणाचार्य हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया। उस समय हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र ने उन्हें सभी कौरवों और पांडवों को शिक्षा देने को कहा और उनको ये दायित्व सौंपा दिया। कौरवों और पांडवों ने एक साथ अश्वत्थामा के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की इस दौरान अश्वत्थामा ने भी शस्त्र और शास्त्र विद्या का अच्छी तरह से ज्ञान ले लिया। उसी दौरान अश्वत्थामा और दुर्योधन एक अच्छे मित्र बन गए थे
When Ashwatthama was killed in a lie – जब झूठ-मूठ में अश्वत्थामा मारा गया
अश्वत्थामा, महाभारत के महान योद्धाओं में से एक माना जाता है उन्होंने कौरवों का साथ दिया। एक समय युद्ध में अश्वत्थामा और द्रोणाचार्य पांडवों की सेना पर भारी पड़ रहे थे। उसी समय श्रीकृष्ण एक युक्ति के तहत बल से नहीं छल से द्रोणाचार्य को हरा दिया। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से झूठ कहलवा दिया कि अश्वत्थामा युद्ध में मारा गया। ये सुनकर द्रोणाचार्य चिंता में डूब गए और अपने हथियार उन्होंने फेक दिए। द्रोणाचार्य के पास हथियार देखकर द्रोपदी के भाई ध्रिश्टद्यूमन ने उनका सिर काट कर अलग कर दिया। ध्रिश्टद्यूमन का जन्म द्रोणाचार्य का वध करने को हुआ था।
(History of Ashwatthama)अपने पिता की मौत से अश्वत्थामा बहुत गुस्से में आ गया था। उसने पांडवों से बदला लेने का वचन ले लिया।लेकिन धीरे-धीरे सभी कोरव मारे गये। दुर्योधन की मौत के बाद महाभारत का युद्ध भी खत्म हो गया। अश्वत्थामा कोई भी पांडव को मार नहीं पाया।
Ashwatthama is immortal – अश्वत्थामा अमर है
महाभारत का युद्ध जब खत्म हो गया था तो उसके बाद अश्वत्थामा ने छल से पांडवो को मारने की योजना बना ली। वो पांडवो के कमरे में गया। वहां पांडवो द्रोपदी के पांचों बेटे सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर उनको अंधेरे में मार दिया। इस घटना के बाद उसी समय सभी पांडव श्रीकृष्ण के साथ अश्वत्थामा को मरने चले गये। वहां अश्वत्थामा और पांडवों के बीच युद्ध हुआ। (The Immortal Ashwatthama)अश्वत्थामा ने पांडवों को मारने के लिए ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करने लगा। उसी समय अर्जुन ने भी अपना ब्रम्हास्त्र चला दिया ।लेकिन अगर दो ब्रम्हास्त्र एक दूसरे से ठकराते तो दुनिया में प्रलय आ सकती थी इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन ब्रम्हास्त्र वापस लेने के लिए कहा अर्जुन ने ब्रम्हास्त्र वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा को ब्रम्हास्त्र वापस लेना से इंकार दिया उसने वह ब्रम्हास्त्र अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की विधवा पत्नी की कोख में पल रहे बच्चे की ओर चला दिया ब्रम्हास्त्र से कोख में पल रहे बच्चे की जान चली गयी इस घटना के बाद उसी समय भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को एक श्राप दिया कि जब तक धरती पर जीवन है तब तक वह भी जिंदा रहेगा और जगंलो भटकता रहेगा।
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